Rajula Malushahi book:- click hare
दो अलग - अलग जातियों की कहानी : RajulaMalushahi :-
राजुला-मालूशाही एक ऐसी कहानी है जो दो अलग - अलग क्षेत्रों और अलग - अलग परिवेश में रहते है। जिनका एक दूसरे के रहन-सहन और खान-पान तक में जमीन आसमान तक का अंतर है। दो ऐसी जातियों के बीच की कहानी जिनका मिलन होना उस दौर में बिलकुल ना मुमकिन था। पर जब ऊपर वाले ने ही दोनो को मिलाने की सोच ली हो तो तब उनके बीच में कोई भी कष्ट हो पीड़ा हो वेदना हो वह सारे बंधनों को लाँघकर अपनी चरम सीमा को पार करके एक दूसरे के लिए किसी की प्रवाह किये बिना एक ऐसा इतिहास रचते है जिसे युगों-युगों तक याद किया जाता हो।
राजुला मालूशाही की सुप्रसिद्ध लोकगाथा : Rajula Malushahi ki kahani:-
ये बात उस समय की है जब उत्तराखंड की धरती पर कार्तिकेयपुर या कत्युरी राजवंशी राजाओं का शासन हुआ करता था। कत्युरी राजाओं की प्रारम्भिक राजधानी जोशीमठ थी उसके बाद कत्युरी वंश के राजाओं ने अपनी राजधानी को बैराठ गढ़ हस्तांतरित कर दिया। ये कहानी उस दौर की है जब कत्युरी राजवंश की राजधानी बैराठ गढ़, वर्तमान अल्मोड़ा के चौखुटिया में हुआ करती थी। लोक गाथाओ औए लोक गीतों के अनुसार उस समय बैराठ गढ़ में राजा दुलाशाह का शासन था।उनका शासन सुव्यवस्थित और सुखमय तरीके से चल रहा था राज्य में सुख समृद्धि थी पर एक चीज की कमी थी वो थी उत्तराधिकारी। राजा की कोई संतान नहीं थी वो इस चिंता में डूबे रहते थे, इसके लिए राजा दुलाशाह ने कहीं देवताओं की पूजा की मनतें मांगी पर कुछ हाथ ना लगा। जब इसकी खबर राज्य में फैली तो किसी ने राजा को बागनाथ मन्दिर जाने के लिए कहा।
राजा दुलाशाह ने सोचा इतना कर दिया तो ये भी कर लिया जाये राजा बागेश्वर के बागनाथ मन्दिर चले गए बागनाथ मन्दिर में कहीं देवताओं की मूर्तियां हैं। उन्होंने यहाँ भगवान शिव की की आराधना की क्यूंकी उन्हें कहा गया था शिव की आराधना करने से ही संतान कल्याण की प्राप्ति होंगी। उसी मन्दिर में भोट के व्यापारी सुनपट शौका और उनकी धर्मपत्नी गांगुली भी संतान की प्राप्ति के लिए यहाँ आये हुए थे। दोनो की आपस में मुलाक़ात हुयी दोनो ने अपनी आप बीती सुनाई और उसके बाद दोनो में यह सहमति हुयी की अगर दोनो की संताने लड़का और लड़की होंगे तो दोनो आपस में उन दोनो की शादी करवा देंगे। बागनाथ में लिया गया निर्णय अब सच होने लगा बागनाथ की दोनो परिवारों पर ऐसी असीम कृपा हुई की बैराठ के राजा दुलाशाह के यहाँ पुत्र का जन्म हुआ और भोट के व्यापारी सुनपट शौका के यहाँ सुन्दर कन्या का जन्म हुआ। राजा दुलाशाह ने अपने पुत्र का नाम मालूशाही रखा और दूसरी और सुनपट शौका ने राजुला। राजुला इतनी सुन्दर थी की पुरे क्षेत्र में उसी की ही सुंदरता की चर्चा चलती रहती थी वो गुणों की धनवान थी और सुंदरता की मूर्त इसी सुंदरता ने वंहा के वासियों को उसकी और आकर्षित किया हुआ था।
जब राजा दुलाशाह का पुत्र हुआ तो राज्य में खुशहाली और भी बढ़ गई राजा ने राज्य के सारे विद्वानों और ज्योतिषों को बुलाया और अपने पुत्र के भाग्य के बारे में बताने को कहा गया। तब ज्योतिषों ने जो कहा उसको सून के राजा भोंचके से रह गए, ज्योतिषी ने कहा ' हे राजन तेरा पुत्र बहुरंगी है औए इसका अल्पआयु का योग बन रहा है ' राजा ने इसका उपाय पूछा तो ज्योतिषी ने कहा - जन्म के पाँच दिनों के अंदर ही इसकी शादी करवानी होगी। राजा ने तुरंत ही अपने पुरोहितो को शौका प्रदेश सुनपत शोका के यहाँ भेज दिया जब सुनपत शौका को इस बारे में जानकारी हुई वो बेहद ख़ुश हुये और अपनी सुन्दर सी बच्ची का प्रतीकात्मक रूप से विवाह कर दिया गया। उसके कुछ समय पश्चात राजा दुलाशाही की मृत्यु हो गई उनकी मृत्यु के बाद राजा के दरबारियों ने इसका पूरा फायदा उठाया और यह भ्रान्ति फैला दी की इस बच्ची के प्रतीकात्मक विवाह से ही राजा की मौत हुई है, इसने ही राजा को खा दिया है अगर ये यहाँ की रानी बनेगी तो राज्य का नाश हो जायेगा।
मालूशाही को इसकी खबर ना थी और ना कभी किसी ने मालूशाही को इस बारे में बताया था। दोनो धीरे-धीरे जवान होते गए और दोनो की उम्र शादी लायक हो गई। वंही दूसरी और सुनपत शौका चिंता में थे क्यूंकि उन्होंने राजा दुलाशाही को वचन दिया था और वंहा से कोई खबर तक ना आयी थी। जब राजुला जवान हो गई तो इसकी शादी की चिंता ने सुनपत शौका को और भी चिंता में डाल लिया।
एक दिन राजुला अपनी माँ के साथ बैठी बाते कर रही थी तो उसने अपनी माँ से पूछा की -
" माँ दिशाओं में कौन सी दिशा प्यारी है?
पेड़ों में कौन सा पेड़ बड़ा, औए गंगाओं में कौन सी गंगा?
देवो में कौन सा देव, राजाओं में कौन सा राजा और देशों में कौन सा देश"?
तब उसकी माँ ने उत्तर दिया-
"दिशाओं में सबसे प्यारी पूर्व दिशा, जो इस सुन्दर पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में सबसे बड़ा पेड़ पीपल, क्यूंकि उसमें देवताओं का वास है, गंगाओं में सबसे बड़ी गंगा भागीरथी, जो सबके पापो का हरण करती है, देवताओं में सबसे बड़े देवता स्वयं महादेव है, और राजाओं में राजा है राजा मालूशाही और देशों में देश है रंगीलो बैराठ "।
इतना सुनने के बाद राजुला के चेहरे पे हल्की सी मुस्कान छायी और उसी मुस्कान से उसने अपनी माँ से कहा - माँ मेरी शादी रंगीलो बैराठ ही करना ” उसकी माँ ने हल्की मुस्कान से कहा ठीक है। उसके कुछ दिनों बाद हूण प्रदेश का राजा विक्खीपाल भोट प्रदेश आ पहुंचा और उसने सुनपत शौका से उसकी बेटी का हाथ माँगा जब सुनपत शौका ने मना किया तो विक्खीपाल ने उनको धमकाया और राज्य को उजाड़ फेंकने की बात भी कही।
वंही दूसरी और मालूशाही को राजुला के सपने आते थे सपने में ही मालूशाही राजुला के रंग-रूप को देखकर उसपर मनमोहित हो गया था और सपने में ही उसने राजुला को ये वचन भी दे दिया था की एक दिन में आऊंगा औए तुझे अपनी रानी बना के लें आऊंगा। यही सपना राजुला भी देखती थी। पर राजा विक्खीपाल की धमकी से राजुला घबरा जाती है और अपने मन में बैराठ गढ़ जाने की सोचती है। एक दिन राजुला अपनी माँ से रंगीलो बैराठ का रास्ता पूछती है उसकी माँ कहती है बेटी बैराठ का रास्ता क्यों पूछ रही हो तुझे तो हूण देश जाना है। फिर एक रात राजुला एक हीरे की अंगूठी लेकर रंगीलो बैराठ की और चल पड़ती है।
उसको बैराठ का रास्ता मालूम नहीं था पर विधि का विधान कुछ ऐसा था की वह ऊँचे-नीचे पहाड़ो, घाटियों, नदियों और जंगलो को पार करके अपनी मंजिल की और बढ़ती जाती। वह इन रास्तो को पार करके बागेश्वर आ पहुंची कहा जाता है की राजुला को रास्ता दिखाने का काम एक पक्षी ने किया। वंही दूसरी और मालूशाही भोट आने के लिए अपने परिवार से लड़ - झगड़ने लगा तो उसके परिवार वालो ने उसे एक जड़ी सुंघा दी जो निंद्रा की थी और मालूशाही निंद्रा में चले गए उसी बीच वंहा राजुला आ पहुंची। राजुला ने मालूशाही को निंद्रा में देखा और उसको जगाने लग गई पार उसके प्रयास असफल रहे। क्यूंकि मालूशाही उस निंद्रा जड़ी के वश में थे जब मालूशाही नहीं उठा तो राजुला ने निंद्रा में ही मालूशाही को वो अंगूठी पहना दी जो वो भोट अपने घर से लायी थी और एक पत्र भी लिख दिया और मालूशाही के सिरहाने रख कर उदास मन से अपने देश भोट चली आयी। जब मालूशाही को निंद्रा जड़ी से मुक्ति मिली तो उसने देखा उसके हाथ में अंगूठी है और सिरहाने पर राजुला का पत्र, पत्र में लिखा था " हे राजा मालू में तेरे पास आयी थी, पर तू निंद्रा अवस्था में था, अगर तूने अपनी माँ का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण प्रदेश चले आना क्यूँकी मेरा विवाह अब मेरे घर वाले वंही कर रहे है "। यह देखकर राजा मालूशाही चिंता में पढ़ जाते हैं और वह गुरु गोरखनाथ जी की शरण में चले जाते हैं।
जब मालूशाही गुरु गोरखनाथ जी के पास पहुँचे तो गुरु अपनी तपस्या में बैठ हुए थे मालूशाही ने गुरु को प्रणाम किया और कहा गुरुदेव मुझे राजुला से मिलवा दो, मगर गुरु गोरखनाथ ने मालू को कोई जवाब ना दिया। इसके बाद मालू वंहा से चला गया और उसने अपने राजश्री मुकुट और कपड़ो को एक नदी में बहा दिया और एक सफ़ेद धोती पहनकर औए शरीर पर धूनी की राख लगा कर गुरु गोरखनाथ के सामने चला गया और कहा गुरूजी आप मुझे राजुला से मिला दो नहीं तो में यही आपके सामने आपके इस स्थान पर विषपान कर के अपने प्राणो की आहुति दे दूंगा। तब गुरू गोरखनाथ मालू को समझाते हैं की जाकर अपना राजपाठ देख अपनी राज्य की देखभाल कर हम तेरी ब्याह किसी अच्छी लड़की से कर देंगे और उसका नाम राजुला रख देंगे। तब मालू कहता है- गुरूजी आप इतना सब तो कर सकते हो पर राजुला जैसा रूप, गुण कहाँ से लाओगे?इसके बाद गुरू गोरखनाथ ने उसे तंत्र-मंत्र की शिक्षा विद्या दी ताकि उसपर हूण देश के विष का असर ना हो सके।
उसके बाद मालू का सर मुंडवा दिया गया उसके कानो भी छेदें गए और उसके बाद गुरु गोरखनाथ ने उसे अपनी माँ से भिक्षा लेने के लिए महल में भेज दिया औए कहा सबसे पहने अपनी माँ से भिक्षा ला, और भिक्षा ला और खाना भी खा, तब मालू महल पहुंचा और और उसने वंहा खाना और भिक्षा मांगी तो रानी ने कहा - हे जोगी! तू मेरे मालू जैसा प्रतीत होता है कौन है तू? तब मालू ने कहा में किसी का मालू नहीं में एक जोगी हूं और भिक्षा मांगने आया हूं मुझे भिक्षा और खाना दो। तब रानी ने उसे खाना दिया, मालू ने खाने के पाँच ग्रास बनाये। पाँच ग्रास बनाने के बाद मालू ने पहला ग्रास गाय के नाम का रखा, दूसरा ग्रास बिल्ली को दें दिया, तीसरा ग्रास अग्नि के नाम छोड़ दिया, चौथा ग्रास कुत्ते को दें दिया औए पांचवा ग्रास अपने आप खा लिया। ऐसे देखकर रानी समझ गई की ये मेरा ही मालू होगा क्यूंकि मालू ही पाँच ग्रास रखता था। उसके बाद उसकी माँ ने कहा बेटा तू इस राजपाट को छोड़कर जोगी क्यू बन गया है क्या कारण है जोगी बनने का अपनी माँ को बता तब मालू ने कहा - माँ तू इतनी चिंता मत कर में हूण देश जाऊंगा और राजुला को जल्दी से लेकर आऊंगा। उसके बाद उसकी माँ ने फिर समझाया पर मालू ना समझा और चल दिया राजुला को लेने तो उसकी माँ ने कुछ सेवक भी मालू के पिछे भेज दिए।
राजा मालूशाही घूमते - घूमते जोगी के वेश में हूण देश आ पहुंचा, हूण देश में बहुत सारी विष की बावड़ी थी। जिसका पानी पिने से सारे अचेत हो जाते थे मालू पर इसका असर हो रहा था तो मालू अचेत होने लगा तो तभी विष की देवी ने देखा और उसको मालू पर दया भाव आ गया और उसने मालू का विष निकाल फेंक दिया। उसके बाद मालू धीरे -धीरे महल के पास आ पंहुचा, उसने देखा महल मैं चहल - पहल थी क्यूंकि राजा विक्खीपाल राजुला को वंहा लें आया था। तब मालू ने जोर से कहा 'माई भिक्षा दें' तो महल से एक सुन्दर सी सोने के गहनो से लदी राजुला हाथ में भिक्षा लिए आयी और बोली 'हे जोगी लें भिक्षा लें ' जोगी ने जैसे ही राजुला को देखा तो वह उसे देखते ही रह गया जैसे उसने सपने में देखा था सुंदर गुणवान वैसी ही राजुला आज उसके सामने खड़ी थी उसे देखकर जोगी सब कुछ मानो भूल बैठा हो। तब थोड़ी देर में जोगी ने कहा - हे रानी तू तो बड़ी भाग्यवन लग रही है यहाँ कैसे आना हुआ? राजुला ने कहा - जोगी जरा देख तो मेरी हाथो की लकीरो में क्या लिखा है ये लकीरें क्या कह रही है। तब जोगी ने कहा में बिना किसी जानकारी के हाथ नहीं देखता पहले अपना परिचय दो। तब राजुला ने कहा - में भोट के व्यापारी सुनपत शौका की लाडली राजुला हूं। अब बता क्या लिखा है मेरे भाग्य में, तब जोगी ने उसका कोमल सा हाथ अपनी हाथो में लिया और कहा - बेटी तेरा भाग्य कैसे फूटा हुआ है, तेरे भाग्य में तो रंगीलो बैराठ का राजा मालूशाही था। तब राजुला के आंख में आँसु आ जाते है औए कहती है जोगी जी मुझे मेरे माँ- बाप ने इस राजा विक्खीपाल के ब्याह दिया है, तभी अचानक जोगी अपनी वेशभूषा उतार देता है और कहता है राजुला में मालू तुझे यहाँ से ले जाने आया हूं और तेरे लिए ही ये वेशभूषा भी डाल रखी थी।
उसके बाद राजुला विक्खीपाल को बुलाती है और कहती है - ये बहुत बड़े ज्ञानी जोगी है ये सारी विद्या जानते हैं ये हमारे काम आ सकते हैं। विक्खीपाल मान जाता है पर उसको थोड़ा शक भी हो रहा था पर उसने जोगी को महल में बुला लिया और उसके पीछे अपने जासूस भी लगा दिए।उसी बीच राजुला और मालू दोनो एक दूसरे से छिप - छिप के मिलने लग गए। पर एक दिन विक्खीपाल को इसका पत्ता लग गया की वो जोगी बैराठ का राजा मालूशाही है तो उसके बाद विक्खीपाल ने मालू को मारने के लिए खीर बनवाई और उसमें विष डाल दिया और जोगी को खाने के लिए बुलाया। जैसे ही मालू ने खीर खायी तो मर गया तभी राजुला भी वंही पर अचेत सी हो गई थी। उसी रात को मालू की माँ को सपना होता है सपने में मालू कहता है माँ में मर गया मुझे हूण देश के राजा ने मार दिया। उसके बाद मालू की माँ मालू के मामा, सिदुवा- विदुवा और गुरु गोरखनाथ को हूण देश के लिए रवाना कर देती है।
जैसे ही सिदुवा-विदुवा रमौल, मालू के मामा, गुरु गोरखनाथ और उनके सैनिक हूण प्रदेश पहुंचे तो उन्होंने अपनी सारी विद्या का प्रयोग किया और अपनी तंत्र - मंत्र विद्या के द्वारा मालूशाही को जीवित कर लिया। जैसे ही मालू जीवित हुआ वो राजुला के कक्ष में गया और उसे जगाया, वंही इनके सैनिको ने हुणि सेना को मार गिराया और इस लड़ाई में विक्खीपाल भी मारा गया। उसके बाद रंगीलो बैराठ सन्देश भिजवाया गया की राजा मालूशाही राजुला संग बारात लिए आ रहे है नगर को सजाया जाये। उसके बाद सभी बैराठ गढ़ आ पहुंचे और वंही Rajula-Malushahi का ब्याह सम्पन्न हुआ उसके बाद राजुला मालूशाही से कहती है मैंने पहले ही कहा था में नौरंगी राजुला हूं और जो भी दस रंगी होगा उसी से ब्याह करूंगी हे मालू तुमने मेरी लाज रख दी, तुम मेरे जीवन भर के प्राण प्रिये हो। उसके बाद दोनो सुखमय जीवन व्यतीत करने लगे और बैराठ में भी सुख समृद्धि हुई और अब दोनो दम्पति राज सेवा में एकजुट लगे रहे।
निष्कर्ष:-
rajula malushahi ki Kahani आज उत्तराखंड के इतिहास में अजर अमर हो गई ये कहानी बताती है की कितनी भी विपत्ती आये कितने भी कष्ट हो परिस्थिति कैसी भी हो प्रेम कभी किसी को किसी से दूर नहीं करता, सच्चा प्रेम हमेशा नया इतिहास रचता है।
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